इतने प्यार से मिल-जुल कर खाना खाते बच्चे !
कल ऐसे हो सकते हैं, किसने
सोचा था !
खुद गाँधीजी भी इस सोच में डूबे हैं,
खुद गाँधीजी भी इस सोच में डूबे हैं,
शैतान इतना हावी है इस देश पर की बच्चो को भी प्रदर्शन में
बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना पढ़ रहा है !
बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना पढ़ रहा है !
यह हमारा भारत है ?
जहाँ बच्चो की पढने और खेलने की उम्र है वो ढाई रूपए का झंडा बेचने भर के होकर रह गए हैं !
या
यह हमारा हिंदुस्तान है ?
जहाँ लोगों के पास रहने के लिए बसेरा, खाने के लिए पेट भर खाना, और पहनने के लिए कपडे की
व्यवस्था नहीं है !
नहीं!
यह हमारा इंडिया है !
जिसने भी पहचाना वो देखते ही हसने लगा देश की हालत पर !
जय हिंद !
bahut badhiya mayank, lage raho. good creativity and nice thinking.
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