Thursday, July 12, 2012

झुग्गी !

झुग्गियाँ !
दिल्ली और उसके आस पास का क्षेत्र प्रवासी लोगों द्वारा बसाया गया है। यह सिर्फ औद्योगिकीकरण की वजह  से है। जब शहर बस्ता है तो वहां हर वर्ग के लोगों का पलायन होता है जिसमे मजदूर वर्ग बहुत ज़यादा होते हैं। दिल्ली में मजदूर वर्ग के लोग बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश से हैं।  औद्योगिकीकरण के शुरू होते ही बहुतेरे छोटे-छोटे कम होते हैं जैसे की खाना बनाना, पानी का टैंकर लगाना, राज मिस्त्री का काम, रिक्शा चलाना इतियादि। यह वाही लोग है जो झुग्गियों में रहते हैं।

झुग्गीवासी जब अपने गाँव से दिल्ली आते है तो यह आस लिकर आते हैं की कुछ कर दिखाना है मगर रोज़ का वही ढर्रा उनको रोकता है और झुग्गियों को उत्पन्न करने में भरपूर भूमिका निभाता है।

आमतौर पर दिल्ली में  झुग्गियां खली रोड, रेलवे लाइन के पास, सीवर और नदी के किनारे और रिहाहिशी इलाकों के पास देखने को मिल जाती हैं। राजधानी में 56 प्रतिशत झुग्गियां रिहाहिशी इलाकों के पास और 40 प्रतिशत रोड के किनारे बसी हुई हैं। इसमें रहने वाले लोग दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे हैं मगर मूल सुविधाएं घटती जा रही हैं।

पलायन क्यों !
दिल्ली में 18.74 प्रतिशत आबादी झुग्गीवासियों की है। ग्रामीण लोगों के विस्थापन का मुख्य कारण आर्थिक असमानता है। शहरी क्षेत्रों में रुपयों का लेन-देन ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा है और काम करने के लिए भी रोज़गार की कमी नहीं है। ग्रामीण इलाकों से आये हुए लोग ज्यादा पढ़ा-लिखा न होने के कारण छोटे काम करना पसंद करते हैं और रहने के लिए भी ऐसी ही जगह का चुनाव करते हैं जो छोटी हो। इन लोगों के लिए, रहने की पहली प्राथमिकता झुग्गियां ही होती हैं।

फिलहाल भारत में स्लम आबादी 15 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में और 23 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहती है।

सुविधाएं !
1996-1997 के आठवें योजना प्लान में नेशनल स्लम डेवलपमेंट  प्रोग्राम को बनाया गया और झुग्गीवासियों के लिए मुख्य बिंदु निर्धारत की गयी जिससे की उनका भी उत्थान हो सके। 2001 की जनगढ़ना रिपोर्ट के अनुसार देखा गया की नेशनल स्लम डेवलपमेंट प्रोग्राम बनाने के बावजूद दिल्ली की झुग्गियों में कुछ भी खासा उत्थान नहीं हुआ है बल्कि और जगह की झुग्गियों से उनका हाल बुरा है। स्वास्थ्य सुविधा, छोटे कमरे के खुद के माकन, उनके बच्चों के लिए शिक्षा सब की हालत पहले से बुरी हालत में ही दिखाई दी।

यहाँ रह रहे लोगों के पास वोटर कार्ड, राशन कार्ड, आधार कार्ड, सब है मगर कुछ नहीं है तो सिर्फ मूल सुविधाएं। सालों से रह रहे लोगों को मूल सुविधाओं से वंचित रखा जाता है और इसका मुख्य कारण बताया जाता है प्रवासी होना। यहाँ पर रह रहे लोगों के पास योजना के तहत नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं, छोटे कमरे के खुद के  मकान और बच्चों के लिए शिक्षा होनी चाहिए मगर पूर्ती सालों से लटकी हुई है। व्यवस्था इतनी लचर है की ओरतों को शौच्य और नहाने के लिए भी खुले में ही जाना पड़ता है। झुग्गी में पानी और बिजनी की कमी भी गैरकानूनी तरीके से पूरी होती है।

सालों से झुग्गियों में रहने वाले बताते हैं कि बीसियों साल से हालात ऐसे ही बने हुए हैं। नयी सरकार आती है घोषणा पत्र में सुख-सुविधाओं का जिक्र करती है और चली जाती है। फिर नया घोषण पत्र बनता है।

2011 की जनगढ़ना के अनुसार दिल्ली में 20.95 प्रतिशत आबादी में बढ़ोत्तरी देखी गई। यह दर 1931 के बाद की सबसे कम है। 1931 में बढ़ोत्तरी 30.25 प्रतिशत थी जबकि 2001 में यह 47.02 थी। जनगढ़ना रिपोर्ट के अनुसार 2001 के बाद और 2011 तक स्लम आबादी काफी हद तक कम हुई है जिस वजह से दिल्ली की कुल आबादी में कमी आई है। स्लम ज्यादातर यमुना पुश्ता, गौतम नगर, कालका मंदिर और नई दिल्ली से हटाये गए हैं। 2010 के कामनवेल्थ गेम्स के दौरान इस प्रक्रिया में तेजी देखी गयी थी।

गैर सरकारी संगठन के सर्वे के अनुसार 2010 के बाद 31 प्रतिशत आबादी दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम इलाके में बड़ी हुई है। यह आबादी दिल्ली के पिछले जगह से यहाँ पलायन हुई है।

भारत देश में मुंबई के बाद दिल्ली में दूसरा सबसा बड़ा स्लम एरिया है। करीब 1.8 करोड़ लोग झुग्गियों में रहते हैं। यह लोग बेरोजगार या दिन की दिहाड़ी पर कार्यरत हैं जो कि अपनी मूलभूत सुविधाएं भी पूरी नहीं कर सकते।

1 comment:

  1. accha likha hai lagta hai ki tum ne is per survey kiya hai tabhi itne deep mai likh paye ho.
    but baat to tab bane jab is per koi majbut kadam uthaye jaye

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