Sunday, January 22, 2012

दूभर हालात आंबेडकर ग्राम के !

नोएडा के हर एक गाँव के बहार सुनहरे अक्षरों से बोर्ड पर लिखा है "आंबेडकर ग्राम" और उसी के नीचे फैली गंदगी यह दर्शाती है कि .प्र. सरकार के लोग डॉ आंबेडकर के कितने बड़े अनुयायी हैं, कि सफाई का भी ध्यान नहीं रख सकते हैं। यह हालात आंबेडकर ग्राम के अंतर्गत आने वाले अकेले निठारी गाँव के नहीं बल्कि हर एक गाँव के हालात इस से भी बदतर हो चुके हैं।


बीते सालों में विकास होना बहुत बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है जिससे लोगों में विरोधाभास की भावना नज़र आती है। गाँव की हालत यह है कि सड़क सही बनी नहीं है, नालियों का पानी रोड पर नज़र आता है, लोग जगह-जगह कूड़ा फैंकते हैं, जिससे बदबू उत्पन्न होती है और गन्दगी फैलती है।

गाँव का आलम यह है कि अधिकतर लोग दो धड़ो में बटे हैं, एक प्रधान के साथ, दूसरा उनके विपरीत। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो सही बात जानना ऐवम बताना चाहते हैं। हर साल ग्राम प्रधान, सरकार के सामने गाँव कि तस्वीर बदलने के नाम पर बजट पास करवाते हैं, जैसे कि पिछले साल भी हुआ था।
अगर कागज़ी कार्यवाही को नजरअंदाज किया जाये तो यह कहना बेईमानी होगी कि बजट के सत्प्रतिशत रुपे का सही इस्तमाल हुआ है।

गाँव में ज्यादा समस्या सीवर की है और हालात देख लगता नहीं कि इस साल भी इस समस्या का हल हो पायेगा और लोग इससे निजाद पाएंगे। गाँव में साल भर पहले ही सड़क बनी थी लेकिन लोगों ने पानी का प्रेसर बढाने के लिए अवैध खुदाई कर सड़क पर गड्डे उत्पन्न किये जिसका खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ रहा है और आज उनका चलना भी दुबार हो चूका है।


अगर हम यहाँ के स्वास्थ्य सेवा के बारे में बात ही करें तो ज्यादा बेहतर होगा क्यूंकि लोगों के अनुसार यहाँ पर स्वास्थ्य सेवा के नाम पर झोला छाप डॉ ही नज़र आते हैं। कभी उनकी दवाओं से मर्ज ठीक हो जाता है तो कभी ऐसे भी हालात हो जाते हैं कि जान के लाले पड़ जाते हैं। यह स्थिति देखने के बाद यहाँ कि स्वास्थ्य सेवाएं भगवन भरोसे नज़र आती हैं।

गाँव में पंडित और गुर्जर लोगों कि ज्यादा तादाद है जिसके फलस्वरूप अनुसूचित जाति के लोगों की अपेक्षा होती है जिसके कारण यहाँ का माहौल गरमाया रहता है। आज यह स्तिथि नज़र आती है की वाल्मीकि जाति के लोगों के पास कोई भी और कैसी भी सुविधा नहीं है और ही कोई राह दिखने वाला है। लोगों की समझ और जागरूकता के आभाव के कारण वह प्रधान से बात करने से हिचकिचाते हैं और यह डर सताता है की बात-बात में लड़ाई कर बैठें।

गणतंत्र के इतने साल बाद भी नई पीढ़ी की वही सोच और गाँव के परिवेश में जूझते लोगों को देख कोई भी शर्मसार हो सकता है। एक तरफ तो हम भारत के विकास का दम भरते नज़र आते हैं, दूसरी तरफ भारत में ऐसे गाँव की कमी नहीं है जहाँ लोगों को बुनियादी सुख-सुविधा के नाम पर खालीपन या खोखलापन नज़र आता है। स्तिथि देखने के बाद कोई भी यह मानने को तैयार होगा की भारत का दिल गाँव में बसता है।

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